Waqt

कुछ दिनों में इस साल को सिर्फ दो महीने ही शेष रह जाएंगे, फिर एक नया साल होगा, फिर एक नया महीना, फिर एक और नया साल। वक़्त जल्दी निकलता है और नहीं भी, आप चाहते तो हैं कि यह वक़्त जल्दी निकले, पर आप उस आने वाले वक़्त में क्या करेंगे यह पता नहीं—फिर भी एक चाह है कि यह समय निकल जाए और उसी समय एक दूसरी चाह है कि यह समय मन्द रफ़्तार से निकले, क्योंकि अभी तक आप अपना कल तय नहीं कर पाए हैं। बड़ी दुविधा है इस वक़्त की। ख़ैर, दुविधा तो यह भी है कि आने वाला वक़्त आपको रास आएगा? या फिर, आप उस वक़्त के निकलने का इज़हार फिर करेंगे? शायद जो वक़्त अभी है, वही ठीक वक़्त है—या शायद नहीं भी है। अब यह तो मालूम नहीं, लेकिन जो भी है, यही वक़्त है।

- Excerpt from journal

I write this recently so I thought why not share this here.

Thank you for reading.


Write a comment ...

Ꭺᴅɪᴛʏᴀ

Show your support

If you like my writings consider supporting it and inspire young writers to continue writing some good stuff

Recent Supporters

Write a comment ...

Ꭺᴅɪᴛʏᴀ

Writer ✍️ Ex- podcaster | Law student ⚖️ | critique | write inconvenient things | passionate politix commenter

Pinned